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प्रेग्नेंसी में कैसे करें त्वचा की देखभाल

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गर्भावस्था नारी जीवन की एक ऐसी अवस्था है, जिसमे उसे विशेष परिस्थितियों और असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
इस अवस्था में स्वास्थ्य के साथ-साथ सौंदर्य पर भी सीधा प्रभाव पड़ता है लेकिन प्रत्येक स्त्री पर समान रूप से नहीं। कुछ महिलायें जहां इस दौरान थकी-थकी व मुरझाई सी लगती हैं, चेहरे पर झाइयां उभर आती हैं, शारीरिक गठन असंतुलित हो जाता है, बाल झड़ने लगते हैं, आंखो के निचे काले घेरे पड़ जाते हैं और त्वचा तेजहीन हो जाती है, वहां कुछ स्त्रियों के सौंदर्य में मानो निखार आ जाता है और वे पहले से अधिक आकर्षक दिखने लगती हैं। यह सब एक ओर जहां शारीरिक प्रकृति और मनोवैज्ञानिक स्थितियों पर निर्भर करता है, वहीं रहन-सहन, खान-पान व अन्य आदतों का भी सीधा प्रभाव पड़ता है।
गर्भावस्था के दौरान शरीर में सामान्यतः कैल्शियम, लोहे व विटामिनों की कमी हो जाती है। इनकी कमी को दूर करने के लिए संतुलित खुराक और यदि आवश्यक हो तो दवा आदि का सेवन करना चाहिए। इस दौरान नियमित दिनचर्या, व्यायाम, शारीरिक मालिश व पर्याप्त विश्राम का विशेष महत्व है। सौंदर्य पुष्प मुरझाने न पाए इसके लिए भी कुछ सावधानियां बरतनी आवश्यक हैं।
इस अवधि में महिलाओं को मानसिक रूप से प्रसन्न रहना चाहिए। आशा और संतोष के सहारे नौ मास एक नन्हे मेहमान की प्रतीक्षा में पलक झपकते बीतते प्रतीत होते हैं।
सौंदर्य को बनाए रखने के लिए गर्भवती महिला का स्वस्थ रहना आवश्यक है। इसके लिए नियमित डाक्टरी जांच और डॉक्टर के निर्देशों का सख्ती से पालन करने में जरा सी भी लापरवाही बरतना ठीक नहीं है।
प्राचीन मान्यताओं का पालन करते हुए महिलाएं इस अवस्था में अधिक भोजन करने का प्रयास करती हैं। यह धारणा निश्चित रूप से गलत है। डॉक्टरी सलाह से या सामान्य रूप से संतुलित भोजन, जिसमें दूध, दही, हरी सब्जियां, फल आदि हों, करें और मिर्च मसाले, चाय-कॉफी, चिकनाई तथा मादक पदार्थों का परहेज रखें। फलों का रस लाभकारी रहता है। पानी भी खूब पीना चाहिए। रक्तचाप बढ़ने पर नमक का सेवन कम कर दें | अच्छा रहे यदि खान-पान की तालिका बना लें और उस पर सख्ती से अमल करें। डॉक्टर यदि लोहे, कैल्शियम आदि की कमी बतायें.तो उनकी पूर्ति हेतु चिकित्सकीय निर्देशों का पालन करें। इस प्रकार आपका सौंदर्य दमकता रहेगा और स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।
कोई हल्का व्यायाम नियमित रूप से डॉक्टर की सलाह पर ही करें। प्रात:कालीन भ्रमण पर जाएं। इससे रक्त संचार ठीक रहेगा व त्वचा निखरेगी। गर्भावस्था के अंतिम दिनों में हल्के व्यायाम भी अत्यंत सावधानी पूर्वक करें। वैसे भी व्यायाम आदि भली प्रकार सीखकर ही करने चाहिए।
ग्रीष्म ऋतु में एक बार और यदि संभव हो तो दो बार स्नान अवश्य करें। स्नान से पूर्व धीरे-धीरे मालिश करवाएं और एक घंटा रुककर स्नान करें। स्नान के लिए किसी अच्छे एन्टीसेप्टिक साबुन का प्रयोग करें। बालों को रीठा, , शिकाकाई के घरेलू शैपू से सप्ताह में दो बार साफ़ करें। गर्भावस्था में हार्मोन्स अधिक सक्रिय हो जाते हैं जो स्वास्थ्य व सौंदर्य को प्रभावित करते हैं। त्वचा को घरेलू उबटनों से साफ करना उचित रहता है। आवश्यकता हो तो नाइट क्रीम व स्किन फूड क्रीम का प्रयोग करें।
इस अवस्था में बाल या तो शुष्क हो जाते हैं या तैलीय। बाल खुश्क हों तो गुनगुने जैतून के तेल की मालिश करें व भाप लगाएं। दो मुंहे बालों को सिरों पर से छांटती रहें। तैलीय बालों के उपचार हेतु विशेष शैपू का प्रयोग करें। कुछ महिलाओं के चेहरे पर झाइयां या चकते उभर आते हैं, जो प्रसवोपरांत स्वयं ही मिट जाते हैं। फिर भी समस्या गंभीर लगे तो डाक्टरी परामर्श ले लें। ये निशान मेकअप से सरलता से छुप जाते हैं।
विटामिन की कमी के कारण आंखों की स्वाभाविक चमक कम हो जाती है। अतः सावधानी बरतें। संतुलित भोजन का सेवन व विटामिन लेने से समस्या पास नहीं आती। भौंहों के बाल झड़ते हों तो जैतून के तेल की धीरे-धीरे मालिश करें। सोने से पूर्व आंखों में गुलाब जल डालें।
कभी-कभी नाखून टूटने की शिकायत भी सामने आती है। कैल्शियम की कमी से यह समस्या जन्म लेती है। एक चम्मच जिलेटिन गर्म पानी में घोलकर प्रतिदिन पीयें। कुछ ही दिनों में नाखून चमकदार व मज़बूत हो जायेंगे।
कैल्शियम की कमी से ही दांतों की समस्याएं जन्म लेती हैं। वे चमक खोने लगते हैं। अत: कैल्शियम का सेवन इस दृष्टि से भी जरूरी है। मसूढ़ों की तकलीफ़ों में विटामिन सी का सेवन करना होगा।
पैरों में सूजन आने पर उनको ऊंचे करके लेटें। अधिक देर खड़े होकर काम न करें।
विश्राम लेटे रहें। पेट, कूल्हों और स्तनों पर स्ट्रैच मार्क न पड़ें, इसके लिए वहां नियमित रूप से लेकिन धीरे-धीरे बेबी ऑयल से मालिश करवाएं। इस अवस्था में सीधे चलें। झुककर नहीं। लेटने-बैठने में भी झुकाव न डालें।
वस्त्र ढीले-ढीले पहने तो सुविधा रहेगी। साड़ी हल्की पहनें। घर पर रहकर गाउन पहनना सुविधाजनक रहता है। वस्त्रों के रंग चटकीले न होकर हल्के होने चाहिए।
गर्भावस्था में स्तनों का आकार बढ़ता जाता है। अतः समय-समय पर ब्रा का साइज बदल डालें। ध्यान रहे कि वक्ष पर अधिक कसाव न पड़े। पैरों में साधारण चप्पल पहनें। ऊंची एड़ी वाले सैंडिल पहनने से गिरने का भय रहता है। मेकअप हल्का व स्वाभाविक ही करें। भारी मेकअप से परहेज रखें।

प्रसव पूर्व व बाद की सौंदर्य समस्याएं- होमियोपैथी सुलझाए

कई ऐसी सौंदर्य समस्यायें होती हैं जिनकी वजह से युवा स्त्रियों की स्वाभाविक सौंदर्यता जाती रहती है जैसा कि कम उम्र में या अत्यधिक कमजोर स्त्रियों के प्रसव पश्चात उनका स्वास्थ्य गिर जाता है या फिर साधारण तन्दुरूस्ती भी नहीं रह पाती। इसी प्रकार कई स्त्रियों का प्रसव पश्चात पेट बढ़ जाता है, या बेढंगा मोटापन, चेहरे की स्निग्धता खत्म हो जाती है, कम उम्र में ही बुढ़ापा सा आ जाता है। कभी-कभी मोटापे की वजह से ऊपर से नीचे तक एकसार शरीर जिसे प्रायः आम भाषा में आलू की तरह शरीर कहा जाता है। इस मोटापे की वजह से फिगर तो खराब हो ही जाता है साथ ही कम उम्र में ही स्त्रियाँ अधेड़ावस्था की लगने लगती हैं। इसी प्रकार की एक आम समस्या इन स्त्रियों के साथ गर्भाणी रेखाओं का पेट में व शरीर के अन्य अंगों पर बनना है। इससे शरीर नुचा-नुचा या जख्मी की तरह लगने लगता है। होमियोपैथिक में ऐसी सौंदर्य समस्याओं का सुलभ व सफल उपचार है जिसे एक दक्ष चिकित्सक बखूबी ठीक कर सकता है।
  1. प्रसव पश्चात पेट का लटक जाना
     
    : प्रसव पश्चात अधिकांश स्त्रियों का पेट लटक जाता है। अत: इस प्रकार के पेट लटकने पर क्रोकस 30 में देना चाहिये। लक्षणानुसार कैल्केरिया कार्ब या सिकेलकार का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  2. स्त्रियों का पेट बढ़ने पर : 
    बिना किसी कारण के यदि स्त्रियों का पेट बढ़ रहा हो तो उन्हें सीपिया 200 की एक मात्रा चिकित्सक की सलाह से हर सप्ताह लेना चाहिए। इससे शरीर के अनुपात में पेट हो जाता है व अपनी स्वाभाविक स्थिति में आ जाता है।
  3. पेट पर झुर्रियां और दाग पड़ना :
    यदि पेट पर झुर्रिया पड़ रही हों तो साइलेशिया व हीपर सल्फ का प्रयोग निम्न शक्ति में कुछ दिनों तक आवश्यकता के अनुसार करना चाहिये।
  4. प्रसव पश्चात गर्भाणी रेखाओं का बनना : प्रसव पश्चात अक्सर कई स्त्रियों के पेट पर सफेद रेखायें जो पहले गर्भावस्था में लाल होती हैं जिन्हें गर्भाणी रेखायें कहते हैं आ जाया करती हैं। इससे शरीर की ऊपरी त्वचा जख्मों की तरह लगने लगती है एवं स्वाभाविक सौंदर्य नष्ट हो जाता है ऐसे निशानों से बचने के लिये स्पांजिया 30 या 200 का प्रयोग करना चाहिये साथ ही बरबॅरिस एक्वा + कैलेन्डूला + जिंक आक्सी इन तीनों दवाओं को मूल अर्क में लेकर लगाना चाहिये।
  5. मोटापे की वजह से पेट बढ़ने पर : यदि मोटापे की वजह से पेट बढ़ रहा हो तो सर्वप्रथम होमियोपैथिक की मोटापा कम करने की दवाओं का इस्तेमाल करना चाहिये जैसे फाइटोलक्का बेरी 6x तथा नेट्रम सेल्फ 12x ये दिन में तीन बार लेते रहे एवं पेट कम करने के लिए पोडोफाइलम 30 का प्रयोग करें। कभी-कभी पीडोफाइलम की वजह से दस्त लग सकते हैं, परन्तु यह पीडोफाइलम की प्राथमिक क्रिया की वजह से होता है ऐसे में एक दो दिन दवा बन्द कर फिर चालू कर देना चाहिये। मोटापा कम करने के लिये फ्यूकस वेसीक्यूकर मूल अर्क में दस-दस बूंद पानी में दिन में तीन बार लम्बे समय तक लेने से मोटापा एवं पेट शरीर के अनुपात में व स्वाभाविक स्थिति में आ जाता है। जिन लोगों की शारीरिक रचना कैल्केरिया कार्ब की हो, उन्हें मोटापा घटाने के लिये कैल्केरिया कार्ब देने से आशातीत लाभ होता है। अगर केल्केरिया शरीर की माता को गर्भावस्था में यह दवा दे दी जाये तो आने वाली सन्तान मोटापे से बच जायेगी तथा सुघड़ व स्वस्थ पैदा होगी।

बेढंगा मोटापन

कुछ लोगों को बेढंगा मोटापन हो जाता है। याने सारे शरीर का मोटापा शरीर के एक स्थान पर सिमट जाता है जैसे-पेट पर, जांघों या कूल्हे आदि पर यदि ऐसे बेढंगे मोटापन में व्यक्ति शीत प्रधान हो तो उसे ग्रेफाइटिस देना चाहिये यदि व्यक्ति उष्ण प्रधान है तो उसे पल्सेटिला दें।

युवा स्त्रियों के मोटापन में

युवा स्त्रियों के मोटेपन में कैल्केरिया कार्ब के बाद ग्रेफाइटिस देना चाहिये।

मोटापा कम करने के लिये

मोटापा कम करने के लिये कैलोट्रोपिस जाइ Q की पाँच-छः बूंद आधे कप पानी में दिन में तीन बार लेने से निश्चित ही मोटापा कम होने लगता है। एसकुलेन्टाइन दवा से निरापद रूप से शरीर की चर्बी घटने लगती है व शरीर सुडौल हो जाता है। यदि त्वचा पर वृद्ध व्यक्ति की तरह सलवटें पड़ रही हों तो सारसापेरिला दवा मूल अर्क में 10-15 बूंद दिन में तीन बार पीएं।

कैल्केरिया कार्ब महिला

सुंदर नैन-नक्श की, गोरी चमड़ी वाली, मोटी, थुलथुल महिला जिसका पेट बढ़कर तश्तरी आकार का हो जाता है। ऐसी महिला को मासिक स्राव अधिक मात्रा में होता है और समय से पहले होता है। ऐसी महिला को मासिक से पूर्व सिरदर्द व श्वेत प्रदर हो सकता है तथा मासिक के दौरानं स्तनों में दर्द भी हो सकता है। ऐसी महिला को उक्त औषधि 200 शक्ति में, सप्ताह में एक बार लेनी चाहिये। पल्सेटिला महिला : अधिक शर्मीली महिला जो बात-बात में रो जाए और मासिक स्राव कम हो या न हो तो उक्त औषधि 30 शक्ति में 10-15 दिन खाएं ।
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