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क्लॉक प्लस क्या होती है और ये कैसे बनती है ( What is Clock Pulse and Its Work)

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आज के इस लेख में हम क्लॉक और प्लस के बारे में बात करेगे आखिर ये क्लॉक और प्लस होते क्या है और कैसे ये कंप्यूटर सिस्टम में काम करते है ये सारी जानकारी आपको इस पोस्ट के माध्यम से मिलेगी, क्लॉक और प्लस High and Low या 1 और 0 का एक क्रम है जो निरंतर होता रहता है और जो लगातार होने वाली फ्रीक्वेंसी है जैसे विधुत में अल्टरनेट करंट (AC) में 50-60 की फ्रीक्वेंसी प्रति सेकंड होती रहती है बिल्कुल इसी तरह से ये क्लॉक और प्लस भी काम करता है इसके बारे में जानने से पहले मैं आपको थोडा सा अल्टरनेट करंट (AC) के बारे में बता देता हूँ, किसी भी फ्रीक्वेंसी को हम Hz हर्ट्ज़ में नापते है ये फ्रीक्वेंसी दो प्रकार की होती है 

१. एनालॉग फ्रीक्वेंसी 

२. डिजिटल फ्रीक्वेंसी 


एनालॉग फ्रीक्वेंसी में हाई और लो का सामान नहीं होता है ये कब हाई होगा और कब लो होगा इसका पता नहीं होता है जबकि डिजिटल फ्रीक्वेंसी में हाई और लो का समय सामान होता है इसलिए इस स्क्वायर फ्रीक्वेंसी भी कहते है 
मदरबोर्ड में डिजिटल फ्रीक्वेंसी होती है क्लॉक सिग्नले क्लॉक प्लस के हाई और लो होने का क्रम होता है जो मिक्रोप्रोससेर को स्टेप बाई स्टेप काम करने के लिए बाध्य करता है, एक मिक्रोप्रोससेर को एक काम को करने के लिए चार क्लॉक की आवश्यकता होती है इसलिए क्लॉक प्लस जितने ज्यादा होगी मिक्रोप्रोससेर उतनी ही तेजी से काम करेगा, किसी भी इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में माइक्रो प्रोसेसर या माइक्रो कंट्रोलर को क्लॉक प्लस देने के लिए क्रिस्टल का प्रयोग किया जाता है 
क्लॉक को के क्रिस्टल के द्वारा बनाया जाता है यह इलेक्ट्रोनिक कॉम्पोनेन्ट है जो अलग अलग फ्रीक्वेंसी में मिलता है क्रिस्टल के अन्दर के पत्थर की पतली पट्टी होती है जिसके दोनों सिरों पर तार जोड़कर एक डिब्बे में बंद कर देते है और तार के दोनों सिरों को बहार निकल देते है जैसे ही इन दोनों सिरों पर निगेतिवे और पॉजिटिव सप्लाई को दिया जाता है ये एक समान क्लॉक निकलने लगता है जिसके एक सर्किट के द्वारा एम्पलीफाई करके प्रयोग में लाया जाता है 
Quartz नाम का एक पत्थर होता है यदि इसके दोनों सिरों पर एक दूसरे के विपरीत वोल्टेज देने पर उसके अन्दर सिकुड़ने और फेलने के क्रिया सामान रूप से होने लगती है इसकी इस क्रिया को कम्प्रेशन और डीकम्प्रेशन की टाइमिंग पत्थर के स्लाइड की मोटाई पर निर्भर करता है, यदि स्लाइड मोटा होगा तो कम, और पतला होगा तो ज्यादा होगी, यह क्रिया लगातार फिक्स्ड स्पीड से होती रहती है यह एक मेकेनिकल एक्टिविटी है इस एक्टिविटी को इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में बदलने के लिए सर्किट की मदद ली जाती है जिसको माइक्रो सेंसिंग कहते है यह पत्थर के एक्टिविटी को सेंस करके क्लॉक को बनता रहता है
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