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इमानदार तेनालीराम की कहानी

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तेनाली रामन अपने दिमाग के बल पर बार-बार अपने राज्य के लोगों की मदद करते थे। दरबार के ज्यादातर लोग तेनालीराम के शौहरत से जलते थे और हमेशा राजा को तेनाली के खिलाफ भड़काते रहते थे। वैसे तो राजा तेनाली पर पूरा विश्वास करते थे पर बहुत दिन तक बार-बार तेनाली के खिलाफ भड़काने के कारण राजा को भी कुछ शक सा हो गया।
अगले दिन जब सुबह दरबार का कार्य शुरू हुआ तो राजा ने तेनालीराम से कहा – तेनालीराम मैं तुम्हरी बहुत शिकायत सुन रहा हूँ कि तुम राज्य के लोगों को ठग रहे हो और उनसे पैसे लूट रहे हो।
तेनालीराम ने राजा को उत्तर देते हुए पुछा – क्या आपको उनके इस बात पर विश्वास है। राजा ने उत्तर दिया – हाँ, अगर तुम बेगुनाह हो तो साबित करो। तेनाली को यह सुन कर बहुत दुख हुआ और वह बिना कुछ कहे ही वहां से निकल गया।
अगले दिन एक सैनिक राजा के लिए एक पत्र लेकर आया। वह पत्र तेनाली का था जिसमें लिखा हुआ था – प्रणाम महाराज, मैंने कई वर्षों तक इमानदारी से आपके राज्य में काम किया है पर आज मुझ पर झूठा आरोप लगाया गया है और मेरी बेगुनाही साबित करने का एक ही रास्ता था मैं अपनी जान ले लूं।
राजा यह जान कर चिंतित हो गए और चिल्लाने लगे वापस आ जाओ तेनाली यह साबित करने का सही तरिका नहीं है। तभी दरबार में बैठे एक के बाद एक मंत्री और लोग तेनाली की तारीफ करने लगे और उसके कार्यों का गुण गाने लगे। तेनाली वहीँ भेस बदलकर चुप कर सब कुछ देख रहा था। तभी तेनाली अपने असली भेस में आगे आये।तेनाली को देख कर राजा खुश हुए। तब तेनाली ने राजा से कहा – हे महाराज इस दरबार में बैठे सभी लोगों ने मेरे विषय में अच्छा ही कहा, क्या इससे कोई अच्छा रास्ता है यह बताने के लिए कि मैं इमानदार हूँ। राजा ने तेनाली से क्षमा माँगा और अपना गलती माना।
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